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भाजपा में चौंकाने वाला बदलाव

केंद्रीय स्तर पर भाजपा का शीर्ष सांगठनिक विस्तार यानी संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का गठन विमर्श का विषय बना है। भाजपा ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जैसे साफ-सुथरे छबि वाले राजनेता को संसदीय बोर्ड से अलग कर एक नई बहस छेड़ दी है। पार्टी के सांगठनिक ढांचे में अगर व्यक्तिवाद का विश्लेषण करें तो नितिन गडकरी जैसा राजनेता कोई नहीं दिखता है। गड़करी की नीति समता और समानतावादी है। वे सत्ता और विपक्ष को एक साथ लेकर चलने वाले हैं। उनकी सोच और
विचारधारा में कहीं न कहीं अटल बिहारी बाजपेयी की छबि दिखती है। सार्वजनिक मंचो पर उन्होंने कई बार ऐसी टिप्पणियां की है जो भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खाती। पार्टी के इस निर्णय से साबित हो गया है कि अंदर कहीं न कहीं वैचारिक मतभेद हैं। फिलहाल आने वाला वक्त नितिन गडकरी के लिए चुनौतियों भरा दिखता है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। गडकरी महाराष्ट्र के नागपुर से आते हैं। नागपुर यानी संघ। कहा जाता है कि नितिन गडकरी की संघ में अच्छी खासी पैठ है। फिर संसदीय बोर्ड से बाहर होना सवाल खड़े करता है जबकि देवेंद्र फडणवीस को प्रमोट किया गया है। हालांकि गडकरी के आगे फडणवीस की वजनदारी नहीं ठहरती है। फडणवीस को आगे लाकर पार्टी नितिन गडकरी को नीचा दिखाना चाहती है? या गडकरी को संगठन में उनकी हैसियत बताने का प्रयास किया गया है ? लेकिन इस निर्णय का असर महाराष्ट्र की राजनीति पर पड़ सकता है। वर्तमान समय में मोदी के बाद भाजपा संसदीय बोर्ड में गडकरी के कैडर का कोई राजनेता नहीं है। अपने मंत्रालय में जितना बेहतरीन काम उन्होंने किया है शायद मोदी मंत्रिमंडल का कोई भी मंत्री इतना अच्छा कार्य किया हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नितिन गडकरी के विचारों में हमेशा द्वंद देखा गया है। कई बार उन्होंने पार्टी लाइन से हट कर अपने विचार रखें हैं। प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं, लेकिन नितिन गडकरी ने कहा था कि विपक्ष का जिंदा होना जरूरी है। कांग्रेस के जो राजनेता बुरे दिन में पार्टी छोड़ रहे हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें पार्टी का साथ देना चाहिए। स्वतंत्रता दिवस पर भी प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से परिवारवाद पर हमला बोला। यह हमला सीधा नेहरू-गांधी परिवार पर था। गडकरी ने हाल के दिनों में एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि राजनीति में अब रहने का मन नहीं करता है। संसदीय बोर्ड से किनारे रखने का मतलब उनकी यह बयानबाजी भी हो सकती है। हालांकि देवेंद्र फडणवीस का बॉर्ड में लिया जाना महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी सरकार गिराने का इनाम भी माना जा रहा है।
मीडिया विश्लेषण पर गौर करें तो यह बात सामने आती है कि भाजपा में अमित शाह के मुकाबले नितिन गडकरी का कद बड़ा दिखने लगा था। उनके मंत्रालय के कार्य को लेकर देश भर में अलग-अलग चर्चाएं होती हैं। क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्गो का संजाल बिछा दिया है। नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए नितिन गडकरी सबसे योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें संसदीय बोर्ड से निकाल कर बाहर कर दिया। भाजपा में यह लंबी राजनीति का संदेश है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ भी ऐसा ही कुछ है। मीडिया में शरद पवार की पार्टी के प्रवक्ता का एक बयान आया है जिसमें कहा गया है कि भाजपा में जिसका कद बड़ा होता है उसे कम कर दिया जाता है। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेता इसके उदाहरण है।