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सनातनी संस्कृति के संस्कार और मानव मूल्य पूरे समाज में स्थापित हों : राज्यपाल

हरिद्वार

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने रविवार को सप्तऋषि आश्रम, सप्त सरोवर हरिद्वार में सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा पंजाब के शताब्दी महासम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया। राज्यपाल ने शताब्दी महासम्मेलन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इस वर्ष सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा पंजाब अपना शताब्दी वर्ष मना रही है। उन्होंने प्रतिनिधि सभा का उल्लेख करते हुए कहा कि संस्था ने 100 वर्ष के इतिहास में धर्म के प्रचार, शिक्षा के विस्तार, संस्कृति के संरक्षण, समाज के कल्याण और राष्ट्र के उत्थान में अपनी निष्काम सेवायें देते हुए समय-समय पर अपने योगदान से इसे प्रमाणित भी किया है।
राज्यपाल ने कहा कि सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा ने अपने शताब्दी वर्ष में सात राज्यों की सनातन धर्म सभाओं और शिक्षण संस्थानों के सहयोग से वर्ष भर अनेक प्रकार के धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समारोहों का आयोजन किया और सनातन धर्म के लोक कल्याणकारी स्वरूप को जन-जन तक पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया। भारत रत्न पण्डित महामना मदन मोहन मालवीय का जिक्र करते हुये राज्यपाल ने कहा कि महामना मालवीय जी ने जिस महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा की 1923 में स्थापना की थी, वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरी तरह से सफल रही। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधि सभा ने शिक्षा के व्यापक स्तर पर विस्तार के लिए देश के उपेक्षित और पिछड़े क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज के स्तर की अनेक सनातन धर्मी शिक्षा संस्थाएँ खोलने का महान कार्य किया है और आधुनिक युवा पीढ़ी को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें संस्कारी और जिम्मेदार नागरिक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
राज्यपाल कहा कि संस्था द्वारा अपने अंतरंग संस्था  सनातन धर्म शिक्षा समिति के सहयोग से सनातन धर्म के स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना, समाज और राष्ट्र के प्रति जवाबदेह, सच्चे और श्रेष्ठ नागरिक बनाना बहुत ही सराहनीय कदम हैं। राज्यपाल ने सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा की इस बात के लिए प्रशंसा की कि उन्होंने अपने शताब्दी वर्ष में शिक्षा संस्थाओं के श्रेष्ठ प्राचार्यों, प्राध्यापकों और शिक्षकों को सम्मानित करते हुए यह प्रकट किया है कि वह सच्चे अर्थों में ही सनातन संस्कृति के आचार्य देवो भव के मूल मंत्र को समाज में फैलाकर शिक्षकों के सम्मान का संदेश समूचे समाज को दे रही है। उन्होंने इस मौके पर आह्वान करते हुये कहा कि विभिन्न प्रदेशों के शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालयों के मेधावी छात्रों तथा अन्य गतिविधियों में उत्कृष्ट भूमिका निभाने वाले छात्रों आदि की एक ऐसी अमृत पीढ़ी को तैयार करना है, जो आने वाले वर्षों में देश के कर्णधार बनेंगे, जो देश को नेतृत्व और दिशा देगी।
राज्यपाल ने कहा कि ऐसे ज्ञानी गुरुओं के बल पर ही हमारे राष्ट्र को विश्व गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तथा आज भी शिक्षकों का दायित्व है कि वे उसी निष्ठा से विद्यार्थियों का भविष्य निर्माण करके देश का भविष्य संवार सकते हैं और भारत को विश्व गुरु के रूप में पुनः स्थापित करने  में महती योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज जो युवा कॉलेज और यूनिवर्सिटी में हैं, उनके करियर को भी अमृत काल के यही 25 साल तय करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि  विकसित भारत युवाओं के सामर्थ्य, जोश, और कठिन परिश्रम पर निर्भर करेगा।
राज्यपाल ने कार्यक्रम में कहा कि हमारी वैदिक सनातनी संस्कृति के संस्कार और मानव मूल्य पूरे समाज में स्थापित हों, समाज में आपसी सद्भाव और समरसता स्थापित हो और हम मिल जुलकर अपने समाज और राष्ट्र की भरपूर सेवा कर सकें यही हमारी कामना है। राज्यपाल ने कार्यक्रम में विशिष्ठ योगदान देने वाले प्राचार्यों, शिक्षकों, छात्र/छात्रों को प्रशस्ति पत्र तथा शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया, जिनमें-डॉ0 राजेन्द्र सिंह, डॉ0 नीरू गर्ग, डॉ0 सीमा वासुदेव, नरेन्द्र जीत कौर सन्धु, डॉ0 मधु शर्मा, डॉ0 शुचि शर्मा, डॉ0 श्याम लाल गौड़ तथा छात्रों में-ईशा, जसवीर, हुनर, नमन, खुशी प्रमुख हैं। राज्यपाल का सप्त ऋषि आश्रम पहुंचने पर पुष्पगुच्छ, शाल तथा प्रतीक चिह्न भेंटकर भव्य स्वागत व अभिनन्दन किया गया।
इस अवसर पर डॉ0 देश बन्धु, डॉ0 भारती बन्धु,  इन्द्र मोहन गोस्वामी,  उपेन्द्र शर्मा, डॉ0 गुरदीप शर्मा, महन्त स्वरूप बिहारी शरण,  विवेक शर्मा, डॉ0 राजीव सहित सम्बन्धित पदाधिकारी एवं अधिकारीगण उपस्थित थे।