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राज्यपाल ने किया परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं प्रतिभागी सम्मान समारोह का शुभारंभ

देहरादून

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने सोमवार को परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं प्रतिभागी सम्मान समारोह का शुभारंभ किया। हिमालय विरासत ट्रस्ट एवं स्याही ब्लू बुक्स दिल्ली तथा हिमालयी विश्वविद्यालय, देहरादून के संयुक्त तत्वाधान में निशंक की सृजन यात्राः अवदान एवं मूल्यांकन पर आयोजित यह संगोष्ठी पूर्व सीएम एवं सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के समग्र साहित्य के मूल्यांकन पर आधारित थी। इस कार्यक्रम में विदेश एवं देश के विभिन्न राज्यों से पधारे साहित्य कर्मियों, बुद्धिजीवियों एवं हिन्दी सेवियों ने प्रतिभाग किया।
इस संगोष्ठी में राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक एक प्रखर राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ प्रसिद्ध लेखक भी हैं। ऐसा संयोग बहुत कम देखने को मिलता है कि लेखन और राजनीति एक साथ चलते हों, किन्तु डॉ. निशंक ने दोनों को एक साथ साधा है। उनकी अब तक 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिन पर 108 रविवार को वेबिनार के माध्यम से समीक्षा एवं चर्चा हो चुकी है। उन्होंने कहा कि डॉ. निशंक की सबसे लम्बी साहित्यिक वार्ता ‘रविवारीय पुस्तक वार्ता’ की 50 वार्ताएं पूर्ण होने पर उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन एवं 75 श्रृंखलाएं पूर्ण होने पर ‘हावर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड सम्मान’ मिला है जो अपने आप में प्रशंसनीय है।
राज्यपाल ने कहा कि साहित्य समाज में जागृत पैदा करता है और दिशा देने का कार्य करता है। यह भी कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज में जब-जब कोई बड़ा परिवर्तन होता है जो साहित्य पर भी उसका असर पड़ता है। कई बार तो साहित्य ही समाज में परिवर्तन करता है। उन्होंने कहा कि साहित्य ने हमें शब्दों का ज्ञान दिया है, हर एक शब्द में जो ताकत है उसे हमें समझना जरूरी है। साहित्य के एक शब्द में असीमित शक्ति होती है।
राज्यपाल ने कहा कि हमारा साहित्य प्राचीन और समृद्ध है। साहित्य के माध्यम से हमारे साहित्यकार देश की चेतना को एक नया आयाम दे रहे हैं। हमारे युवाओं के संकल्पों में स्फूर्ति जागृत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की उन्नति एवं प्रगति साहित्यकारों का महत्वपूर्ण योगदान है। साहित्य से हमारी युवा पीढ़ी को प्रेरित करने का कार्य किया जाता है। उत्तराखण्ड देवभूमि होने के साथ-साथ साहित्य और काव्य रचना की भूमि है। यहां जिस प्रकार से माँ गंगा का प्रवाह गतिशील रहता है। उसी प्रकार से ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म, कला और साहित्य का प्रवाह भी निरंतर प्रवाहित रहता है।
इस कार्यक्रम में डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि, कुलपति अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र प्रो. रजनीश शुक्ल, कुलपति वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय प्रो. निर्मला मौर्य,  अश्विनी के गांवकर, डॉ रश्मि खुराना, डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित थे।