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हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनीः जयंती प्रसाद नौटियाल

देहरादून

वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान देहरादून ने विश्व हिन्दी दिवस 2023 हेतु अपनी शोध रिपोर्ट का 19 वाँ संस्करण शोध रिपोर्ट 2023 जारी करते हुए डा. जयंती प्रसाद नौटियाल ने बताया कि अब हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है। यहां हिन्दी, विश्व की सबसे बड़ी भाषा तथ्य एवं आंकड़े शोध रिपोर्ट 2023 शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल, महानिदेशक, वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान, देहरादून ने बताया कि विश्व में भाषाओं की रैंकिंग एथ्नोलोग नाम की प्रतिष्ठित संस्था करती है। उन्होंने कहा कि यह अमेरिकी संस्था है। उन्होंने बताया कि एथ्नोलोग हिन्दी को तीसरे स्थान पर दिखाता है जबकि हिन्दी विश्व में पहले स्थान पर थी और आज भी है, लेकिन उसे निरंतर तीसरे स्थान पर दिखाया जाता रहा है, किसी भी विद्वान ने इस पर आपत्ति नहीं की। यद्यपि उनके शोध के उपरांत भारत के तथा विश्व के भाषाविद अब हिन्दी को पहले स्थान पर मानने लगे हैं, लेकिन एथ्नोलोग इसे आज भी तीसरे स्थान पर दिखा रहा है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले इस संबंध में सन 2005 में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी तथा अपनी शोध की प्रति भेजते हुए एथ्नोलोग से अनुरोध किया था कि हिन्दी बोलने वालों की सही संख्या का उल्लेख करते हुए हिन्दी को पहले स्थान पर दर्शाएं। उन्होंने कहा कि चूंकि उस समय 15 वें संस्करण के प्रकाशन का कार्य पूरा हो चुका था इसलिए एथ्नोलोग के तत्कालीन संपादक पॉल लेविस ने आश्वासन दिया था कि वे मेरे द्वारा सुझाए संशोधन को अपने 16वें संस्करण में प्रकाशित करेंगे, परंतु कुछ समय बाद एथ्नोलोग ने कहा कि मुझे उर्दू भाषा को हिन्दी भाषा में मर्ज करने हेतु आइएसओ मे बदलाव की प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी। अतः उन्होने मुझसे लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस से संपर्क करने का सुझाव दिया, इस पर मैंने उन्हें बताया कि मेरा उद्देश्य उर्दू को हिन्दी में विलीन करना नहीं है बल्कि मैं चाहता हूँ कि उर्दू भाषा के जानकारों को हिन्दी जानकारों में शामिल किया जाय जैसा कि चीनी भाषा और अंग्रेजी भाषा के बोलने वालों की गणना में एथ्नोलोग द्वारा किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस शोध की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए इसका 25 चरणों में परीक्षण किया गया जिसमे इस शोध पर विश्व विद्यालयों में विद्वानों द्वारा विचार विमर्श, विशिष्ट संगोष्ठियों में परीक्षण, भाषा प्राधिकारियों द्वारा परीक्षण, भाषाविदों व हिन्दी के विद्वानों के विचार/अभिमत आमंत्रित करके शोध की सत्यता का पता लगाया गया। इन सभी चरणों में यह शोध प्रामाणिक सिद्ध हुई है। उन्होंने बताया कि इसी आधार पर , वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने सभी बैंकों, बीमा कंपनियों एवं वित्तीय संस्थाओं को सरकारी निर्देश दिये थे कि सभी हिन्दी कार्यशालाओं में इस शोध को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाय व साथ ही गृह पत्रिकाओं के इसे प्रकाशित किया जाये। उन्होंने बताया कि भारत सरकार राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय ने इस शोध की प्रामाणिकता की जांच के लिए फैक्ट चेक हेतु इसे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) को भेजा गया था। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने इस कार्य हेतु विशेषज्ञ नियुक्त किया। विशेषज्ञ नें इस शोध को प्रामाणिक माना तथा प्रबल रूप से संपुष्टि करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि भारत सहित विश्व के 172 शीर्ष भाषाविदों ने इस शोध का समर्थन किया है।