भगत सिंह ने घर को अलविदा कहते हुए पिता को क्या पत्र लिखा था जानिए
1923 में भगत सिंह नेशनल कॉलेज लाहौर के विद्यार्थी थे। जन जागरण के लिए ड्रामा क्लब में भी भाग लेते थे। क्रांतिकारी अध्यापिका और साथियों से नाता जुड़ गया था।भारत को आजादी कैसे मिली इस बारे में लंबा चौड़ा अध्ययन और बहसें जारी थी। घर में दादी जी ने अपने पुत्र की शादी की बात चलाई। उनके सामने अपना तर्क ना चलते देख भगत सिंह ने पिताजी के नाम पर यह पत्र लिखा, और कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास पहुंचकर प्रताप में काम शुरू कर दिया।वही बी के दत्त शिव शर्मा, विजय कुमार सिन्हा जैसे क्रांतिकारी साथियों से मुलाकात हुई।उनका कानपुर पहुंचना क्रांति के रास्ते पर एक बड़ा कदम बना
पूज्य पिता जी
नमस्त
मेरी जिंदगी मक़सदे आला यानि आजादी ए हिंद के असूल के लिए वक्फ़ हो चुकी है।इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी ख़ाहशात बायसे कोशिश नहीं है। आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापूजी ने मेरे यगोपवीत के वक्त एलान किया था कि मुझे ख़िदमते वतन के लिए वक्फ़ दिया गया है।लिहाज़ा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएंगे
आपका ताबेदार
भगतसिंह