पूर्ण बहुमत में है हेमंत सोरेन सरकार फिर क्यों चला विश्वासमत का दांव
रांची
झारखंड के संसदीय इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। सत्ताधारी गठबंधन के पास 49 विधायकों का प्रचंड समर्थन है। विपक्ष ने सत्ताधारी दल से सदन में विश्वास मत हासिल करने की अब तक मांग नहीं रखी। राज्यपाल ने भी सरकार को विश्वास मत साबित करने का कोई निर्देश नहीं दिया। ऐसी स्थिति में झारखंड के राजनीतिक गलियारे में यह सवाल उठ रहा है कि फिर किस संवैधानिक व्यवस्था के तहत सरकार सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश करने जा रही है। संवैधानिक मामलों के जानकार अयोध्या नाथ मिश्र का कहना है कि यह परिस्थिति तब होती है, जब विपक्ष सरकार के बहुमत पर अविश्वास करे या राज्यपाल को ऐसा प्रतीत हो कि मंत्रिपरिषद ने सदन का विश्वास खो दिया है, इसलिए मंत्रिपरिषद को सदन का विश्वास हासिल करना चाहिए। ऐसी कोई परिस्थिति राज्य के अंदर नहीं है। ऐसी स्थिति में सत्ता पक्ष के विश्वास प्रस्ताव पेश करने के फैसले पर संवैधानिक विशेषज्ञ आश्चर्य चकित हैं। उन्होंने कहा है कि झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र जुलाई के आखिर में संपन्न हुआ। इस सत्र में सरकार ने अनुपूरक बजट पास कराया। यह धन विधेयक था। इसके अलावा कई विधेयक भी पारित हुए। विधेयकों का बहुमत से पारित होने के साथ यह माना जाता है कि सरकार को सदन का विश्वास प्राप्त है और अगले छह महीने के अंदर सरकार को विश्वास प्रस्ताव लाने या विश्वास मत हासिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है। फिर भी सरकार का इस तरह विश्वास प्रस्ताव पेश करने का निर्णय संविधान के किसी भी प्रावधान के तहत नहीं आता है। जब सदन की कार्यवाही पहले से चल रही होती, तो सरकार ऐसा कर सकती थी। इससे सदन के समय और खर्च होने वाले धन का दुरुपयोग नहीं होता, जैसा हाल में दिल्ली विधानसभा में देखा गया। झामुमो की केंद्रीय समिति के सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, श्मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार राज्य की सवा तीन करोड़ जनता द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई है। विधानसभा के विशेष सत्र में बहुमत साबित करके सरकार राज्य की जनता को यह गारंटी देगी कि उनकी चुनी हुई सरकार बहुमत में है और लोक कल्याणकारी कार्य करती रहेगी।