उत्तराखण्ड

कांग्रेस नेता क्यों घबराए पीके से?

कांग्रेस पार्टी में प्रशांत किशोर को लेकर घबराहट है। सोनिया और राहुल गांधी की कोटरी के नेता भी घबराए हैं तो ऐसे नेता भी परेशान हैं, जो पार्टी के दूसरे, तीसरे या उससे भी नीचे के रैंक में आते हैं। पार्टी नेताओं के अलावा कई स्वतंत्र विश्लेषक भी प्रशांत किशोर में कमी निकालने में लगे हैं। वे भी तरह तरह के तर्कों से बता रहे हैं कि पीके कोई जादू की छड़ी नहीं रखते हैं। वे यह भी बता रहे हैं कि इससे पहले जितने लोगों के साथ उन्होंने काम किया है वे वैसे भी जीतने वाले थे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा गठबंधन के लिए काम करने और हार जाने का जिक्र भी किया जा रहा है।
सवाल है कि अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस से जुड़ जाते हैं और 2024 का चुनाव लड़वाते हैं तो इससे कौन सी आफत आ रही है? कांग्रेस वैसे भी सारे चुनाव हार रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद 17 राज्यों के चुनाव हुए हैं और कांग्रेस हर चुनाव हारी है। पिछले आठ साल में कांग्रेस 50 से ज्यादा चुनाव हार चुकी है। उत्तर प्रदेश में प्रशांत किशोर के रणनीतिकार रहते कांग्रेस की हार का तर्क देने वाले पता नहीं क्यों इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि जब पीके ने लड़वाया था तब सौ सीटें लड़ कर कांग्रेस को सात फीसदी वोट मिले थे और इस बार प्रियंका गांधी वाड्रा की कमान में कांग्रेस के दिग्गजों ने चुनाव लड़वाया तो चार सौ सीट लड़ कर कांग्रेस को ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले हैं।
वैसे भी इन दिनों चुनाव बहुत बदल गया है और सभी पार्टियां चुनाव प्रबंधकों और रणनीतिकारों का इस्तेमाल कर रही हैं। कई लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस के पास इतने दिग्गज हैं फिर प्रशांत किशोर की क्या जरूरत है। सवाल है कि भाजपा के पास क्या दिग्गजों की कमी थी, जो नरेंद्र मोदी ने पीके की सेवा ली? लालू-नीतीश क्या कम राजनीति समझते हैं, जो उन्होंने प्रशांत किशोर को चुनाव लड़वाने का जिम्मा दिया? ममता, स्टालिन, उद्धव या जगन को क्या राजनीति की समझ नहीं है, जो उन्होंने प्रशांत किशोर की सेवाएं ली? सो, कांग्रेस नेताओं को शुक्रगुजार होना चाहिए पीके का कि ऐसी स्थिति में भी वे कांग्रेस के साथ जुडऩे को तैयार हैं।