बूढ़ी दीपावली पर लोक संस्कृति के रंग में रंगा जौनसार बावर
विकासनगर। जौनसार बावर में मनाई जा रही बूढ़ी दीपावली के तहत इन दिनों पंचायती आंगनों और मंदिर प्रांगणों में लोक संस्कृति की अनूठी छटा देखने को मिल रही है। दीपावली के दूसरे दिन पंचायती आंगनों में लोकनृत्यों का दौर चला। इस दौरान ग्रामीणों को प्रसाद के तौर पर भिरुड़ी (अखरोट) बांटी गई। जौनसार में दीपावली मनाने की एक अनूठी परंपरा है। जंहा पूरे भारत में नई दीपावली मनाई जाती हैं वहां एक महीने बाद जौनसार में बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है। ये बूढ़ी दीपावली कहीं तीन दिन तो कहीं पांच दिन मनाई जाती है। शनिवार को अमावास की रात से शुरू हुआ दीपावली का जश्न अब निखरने लगा है। रविवार सुबह कई गांवों में भीमल की लकड़ी के होले जलाए गए। जबकि रविवार सुबह से ही पंचायती आंगनों में लोकगीत और लोकनृत्यों का दौर शुरू हो गया था। कोरवा, हाजा, गबेला, कनबुआ, अलसी, पंजिया, नराया, मसराड़, पोखरी, बोहा, बडनू, पानुवा, थैना, मलेथा आदि गांवों में देर रात ग्रामीणों ने लोकनृत्य किया। इस दौरान प्रसाद के तौर पर भिरुड़ी बांटी गई। स्थानीय धार्मिक मान्यता के अनुसार पांडवों के नाम गांव में स्याणा भिरुड़ी (अखरोट) फेंकते हैं, जिसे ग्रामीण प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। इसके बाद हारुल, तांदी, झैंता जैसे पारंपरिक नृत्यों का दौर चलता रहा।