उत्तराखण्ड

पूरे विश्व को सहिष्णुता, शान्ति और अहिंसा की नितांत आवश्यकता: स्वामी चिदानन्द सरस्वती 

ऋषिकेश। आज अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्तमान समय में न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को सहिष्णुता, शान्ति और अहिंसा की नितांत आवश्यकता है। परमार्थ निकेतन में लेफ्टिनेंट जनरल ए नटराजन, एवीएसएम, वीएसएम, लेफ्टिनेंट जनरल जी एस सिहोटा तथा सांसद, अध्यक्ष भारतीय कुश्ती संघ बृज भूजण शरण सिंह जी दर्शनार्थ आये, उन्होंने स्वामी जी से भेंट कर परमार्थ निकेतन गंगा आरती और विश्व शान्ति हवन में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सहिष्णुता, सहनशीलता, धैर्य मनुष्य का गहना है, जिसके बल पर विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहा जा सकता है। हमें सहिष्णुता के संस्कार बच्चों को बचपन से ही देना होगा तभी एक शान्तिपूर्ण भविष्य का निर्माण सम्भव हो सकता है। स्वामी जी ने कहा कि असहिष्णुता केवल समाज की व्यवस्था को ही छिन्न-भिन्न नहीं करती है, बल्कि इसका राष्ट्र व्यापी प्रभाव होता है। असहिष्णुता के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिये राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एकता एवं अखण्डता को अक्षुण्ण रखने के लिये भी सहिष्णुता को बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की आत्मा में संवाद की संस्कृति बसी है। भारतीय संस्कृति युद्ध की नहीं बुद्ध की संस्कृति है। विश्व बंधुत्व, शान्ति, अहिंसा, सद्भाव और समरसता आदि अनेक सूत्र जो भारत की माटी और कण-कण में विद्यमान है और यही भारत की पहचान भी है। भारत ने न कभी वार किया न ही प्रहार किया बल्कि भारत सनातन काल से ही शान्ति का अग्रदूत रहा है। भारत का पूरा इतिहास अहिंसा और शान्ति का रहा है।
वर्तमान समय में भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक है, एक विकासशील और समृद्ध राष्ट्र है साथ ही शान्ति का अग्रदूत है और यही भारत की वास्तविक पहचान भी है। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण ही भारत का जीवन जीने का एक अनूठा अंदाज है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी विशिष्ट अतिथियों को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।3