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रोज-ब-रोज बढ़ती मुश्किलें

देश में लोगों ने बाहर के खाने, ईंधन और यहां तक कि सब्जियों में भी कटौती करनी शुरू कर दी है। कारण महंगाई के कारण घर का खर्च बढ़ जाना है। भारत में कंपनियां अपनी बढ़ती लागत को आम उपभोक्तों से वसूल रही हैं। अब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पांच महीनों के बाद फिर वृद्धि होने लगी है।
कोरोना महामारी से उबर रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर नई मार पड़ी है। एक बार फिर महंगाई ने झटका दिया है। उसका असर हर आम रसोईघर पर दिख रहा है। ये मीडिया रिपोर्टें परेशान करने वाली हैं कि देश में लोगों ने बाहर के खाने, ईंधन और यहां तक कि सब्जियों में भी कटौती करनी शुरू कर दी है। कारण महंगाई के कारण घर का खर्च बढ़ जाना है। इन रिपोर्टों से यह सामने आया है कि भारत में कंपनियां अपनी बढ़ती लागत को आम उपभोक्तों से वसूल रही हैं। अब हाल ही में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पांच महीनों के बाद फिर वृद्धि होने लगी है। जबकि पहले से ही खाने के तेल के दाम भी आसमान छू रहे हैं। अब यह भी सामने आया है कि बीते अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही के बीच भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार उतनी तेज नहीं रही, जितनी कि उम्मीद की जा रही थी। अब अर्थशास्त्रियों ने आशंका जाहिर की है कि तेल की बढ़ी हुई कीमतों का असर मौजूदा रफ्तार पर पड़ेगा, क्योंकि इसके कारण महंगाई बढ़ रही है। दूध कंपनियां मदर डेयरी और अमूल भी दाम बढ़ा चुकी हैं।
हिंदुस्तान यूनिलीवर और नेस्ले ने नूडल, चाय और कॉफी के दाम बढ़ा दिए हैं। जाहिर है, आम लोगों के लिए घर का बजट संभालना बहुत मुश्किल हो गया है। ऐसे में खरीदारी घटाने की मजबूरी सामने आ गई है। भारत के कुल घरेलू उत्पाद में व्यक्तिगत उपभोग का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है। 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद भारतीय कंपनियों ने दूध, नूडल, चिकन और अन्य सामोनों के दाम पांच से 20 प्रतिशत तक बढ़ाए हैं। नतीजतन, 2022 लगातार तीसरा साल ऐसा हो सकता है, जब परिवारों का बजट तंग होगा। गौरतलब है कि भारत में पाम ऑयल सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला खाने का तेल है। इस साल उसकी कीमतें 45 प्रतिशत तक बढ़ चुकी हैं। सूरजमुखी के तेल की सप्लाई प्रभावित होने से भी बाजार पर असर पड़ा है। थोक व्यापारियों का कहना है कि पिछले एक महीने में दाम बढऩे के साथ-साथ खाने के तेलों की बिक्री में लगभग एक चौथाई की कमी आ चुकी है। गौरतलब है कि फरवरी में लगातार दूसरे महीने मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर रही, जबकि थोक मुद्रास्फीति 13 प्रतिशत से ज्यादा है। इस महीने भी आम उपभोक्ताओं के लिए राहत की कोई किरण नजर नहीं आई है।
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