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राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी चुनावी तैयारियां कर दीं शुरू

नई दिल्ली

अगले साल देश में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, जिसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नजर उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर है। 2019 के चुनाव में यहां बीजेपी ने 72 सीटों पर भगवा लहराया था। 2024 में भी अपने प्रदर्शन को दोहराने या फिर उससे बेहतर करने के लिए बीजेपी हर दांव आजमा रही है। यही कारण है कि यूपी में बहुजनों को साधने में जुट गई है। पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण दिया गया। अब कंशीराम की जंयती पर भगवा पार्टी ने उन्हें याद किया है। इन दोनों कवायदों के अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कंशीराम को याद किया और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने लिखा कि दलितों, वंचितों व शोषितों के समग्र उत्थान हेतु आजीवन संघर्षरत रहे जनप्रिय राजनेता कांशीराम की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उनसे पहले यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भुपेंद्र सिंह चौधरी ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने लिखा कि कुशल राजनीतिज्ञ, दलितों, वंचितों एवं शोषितों के प्रभावशाली स्वर मान्यवर कांशीराम जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन।
कांशीराम और बीजेपी का अपना सियासी इतिहास है। बीएसपी को यूपी में सरकार बनाने में तीन बार बीजेपी की मदद मिली। कंशीराम का निधन 2006 में हो गया, लेकिन बीएसपी की विचारधारा में उनकी अपनी जगह बनी रही। यही कारण है कि मायावती के द्वारा कई बार कंशीराम को भारतरत्न देने की मांग जा चुकी है।
बीजेपी के इस नए सियासी कदम से बीएसपी का खुश नहीं होना लाजमी है। मायावती की पार्टी ने इसे बीजेपी का दोहरा मापदंड करार दिया है। उसने कहा कि बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर होता है। बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि कंशीराम के आदर्शों के विपरीत बीजेपी की विचारधारा है। बीजेपी को कंशीराम की विचारधारा को अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दलित बीजेपी की चालबाजी को समझते हैं, वे मायावती और बीएसपी का साथ नहीं छोड़ेंगे। वहीं, बीजेपी प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि कांशीराम को याद करने में कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए बहुत काम किया है। हमारी पार्टी सबका साथ और सबका विकास के मूलमंत्र पर काम करती है।
बीजेपी के इस सियासी कदम को दलितों के बीच अपनी पहुंच को बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी को दलितों के बड़े तबके का साथ मिला है। इस ताजा सियासी घटनाक्रम पर राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर रविकांत इसे दलितों को एकजुट करने के लिए यह एक और राजनीतिक संकेत के तौर पर देखते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कि बीजेपी आरएसएस नेता भाऊराव देवरस के दृष्टिकोण को भी अपना रही है, जिन्होंने कहा था कि राजनीतिक प्रतिबद्धता के बावजूद भी सभी दल के दिग्गज नेताओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें याद करना चाहिए। बीजेपी 2014 से लगातार भीमराव अंबेडकर को याद करती रही है। देवरस ने कहा था कि सभी राजनीतिक दिग्गजों को उनकी पार्टी से संबद्धता के बावजूद याद किया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। बीजेपी 2014 से लगातार दलित आइकन बीआर अंबेडकर का आह्वान कर रही है।