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तिब्बती समाज ने चीन के कब्जे के खिलाफ राजधानी में निकाला जुलूस

देहरादून

चीन द्वारा तिब्बत पर किये गये कब्जे के 64वें वर्ष होने के विरोध में तिब्बती समाज के लोगों ने राजधानी में जुलूस निकालकर अपना विरोध दर्ज किया। इस दौरान सभी चीन विरोधी नारे लगा रहे थे। यहां लैंसडाउन चौक के समीप तिब्बती समाज के लोग, युवा एवं छात्र छात्रायें इकटठा हुए और वहां से चीन द्वारा तिब्बत पर किये गये कब्जे के 64वें वर्ष होने के विरोध में तिब्बती समाज के लोगों ने राजधानी में जुलूस निकालकर अपना विरोध दर्ज किया। यह जुलूस आसपास के क्षेत्रों तक गया और पुनः समापन तिब्बती मार्केट में हुआ। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि साल 1959 और तारीख 10 मार्च, जब तिब्बत की राजधानी ल्हासा की सड़कों पर कई हजार तिब्बती चीन के कब्जे से मातृभूमि को बचाने के लिए उठ खड़े हुए थे। वक्ताओं ने कहा कि दलाई लामा की जान बचाने के लिए हजारों तिब्बती पोटला पैलेस को घेरकर खड़े हो गए. चीन की पीपुल्स रिपब्लिक आर्मी इस विद्रोह को दबाने के लिए क्रूरता की सारी हदें पार कर दी और हजारों तिब्बतियों ने देश के लिए जान दी और आखिर में दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि तब से हर साल 10 मार्च को हर साल हजारों तिब्बती और उनके समर्थक दुनिया भर में सड़कों पर उतरकर चीन के खिलाफ विद्रोह को याद करते हैं। वक्ताओं ने कहा कि तिब्बत का वर्तमान क्षेत्रफल जो आज दिखता है, उसे पहली बार सातवीं शताब्दी में राजा सोंगस्टेन गम्पो और उनके उत्तराधिकारियों ने गठित किया था। वक्ताओं ने कहा कि चीन की लाल क्रांति के बाद पीपुल्स रिपब्लिक आर्मी ने 1949 की शुरुआत में तिब्बत में प्रवेश किया और तिब्बत की सेना को हराकर देश के आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया. इसके बाद चीन का दमन चक्र तिब्बत में शुरू हुआ। इस अवसर पर तिब्बती समाज के अनेक लोग शामिल रहे।