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खुली व दबी राजनीतिक बगावत

 

कांग्रेस कर्नाटक मंे अपनी विजय को संजीवनी बूटी समझ रही है और उसी के आधार पर विपक्षी एकता के महागठबंधन मंे वह नेतृत्व भी चाहती है। चिंता की बात यह है कि उसी कर्नाटक मंे बगावत खुलकर सामने आ गयी है। चार दिन पहले ही कांग्रेस ने वहां सरकार बनायी और आठ दिन इस बात पर झगड़ा होता रहा कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धा रमैया बाजी जीत गये। सीएम पद की दौड़ में जी परमेश्वर भी शामिल थे। अब वह खुलकर कह रहे हैं कि मैं मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता। ध्यान रहे पिछली बार जब जेडीएस के साथ समझौता करके कांग्रेस ने कुमार स्वामी देवगौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया था, तब भी सिद्ध रमैया ऐसा ही राग अलाप रहे थे। नतीजा यह हुआ था कि कुमार स्वामी के हाथ से भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने सत्ता छीन ली थी।
उधर, कर्नाटक में खुली बगावत है तो महाराष्ट्र मंे भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट मंे दबी बगावत देखी जा रही है। शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के विधायकों को तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली। उस समय भी जोरदार चर्चा थी कि देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे और एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। ठीक मुहूर्त के समय भाजपा हाईकमान ने फरमान सुनाया कि शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। यह फरमान देवेन्द्र फडणवीस को अच्छा नहीं लगा था और उन्हांेने अपना विरोध यह कहकर जताया कि वे इस सरकार मंे कोई पद नहीं लेंगे। भाजपा हाईकमान को उनके (फडणवीस के) इतने तेवर भी पसंद नहीं आये थे और उनसे कहा गया कि आपको एकनाथ शिंदे का डिप्टी सीएम बनना है। देवेन्द्र फडणवीस डिप्टी सीएम बने लेकिन आक्रोश की चिंगारी फिर दहक उठी है। आजकल वह शिंदे के साथ बैठक करने से परहेज कर रहे हैं। इसी बीच एक सर्वे ने भी फडणवीस को दुखी कर दिया है। सर्वे में बताया गया कि मुख्यमंत्री के रूप मंे एकनाथ शिंदे देवेन्द्र फडणवीस से ज्यादा पसंद किये जा रहे हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार बन चुकी है। राज्य में बंपर गुटबाजी के चलते काफी खींचतान के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लग सकी थी। अब राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने भी मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोंक दिया है। परमेश्वर ने गत 13 जून को कहा कि कई दलित नेता, अभी और पहले भी जिनमें वो खुद भी शामिल हैं, सभी में मुख्यमंत्री बनने की पूरी क्षमता होने के बावजूद उन्हंे अवसरों से वंचित कर दिया गया। परमेश्वर ने दलित समुदाय से एकजुट रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि दलितों के बीच की हीन भावना को जाना होगा। यही वजह है कि मैं खुले तौर पर कहता हूं कि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा, मुझे क्यों नहीं बनना चाहिए। के एच मुनियप्पा दलित नेता और मंत्री, बसावलिंगप्पा या एन रचौया या रंगनाथ की क्षमता में क्या कमी है? परमेश्वर ने दलितों से आह्वान किया कि वे अपने अधिकार के लिए आवाज उठाएं और अपने वोट का सही इस्तेमाल करें और उन्हें संविधान के महत्व की याद दिलाएं। परमेश्वर ने पूर्व में भी खुले तौर पर अपनी मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा व्यक्त की थी। इसके साथ ही उन्होंने पिछले महीने चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस से सिद्धारमैया को चुने जाने पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को चेतावनी दी थी कि अगर एक दलित को उपमुख्यमंत्री पद नहीं दिया जाता है तो वहां प्रतिक्रिया होगी और यह पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर देगी।
एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के दौरान परमेश्वर उपमुख्यमंत्री थे। वो सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख भी थे। वह 2013 का विधानसभा चुनाव कोराटागेरे से हार गए थे, जब वह केपीसीसी अध्यक्ष थे तब परमेश्वर मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हारने के बाद उन्हें एमएलसी और सिद्धारमैया सरकार (2013-2018) में मंत्री बनाया गया था। परमेश्वर ने ये भी दावा किया कि कांग्रेस कुछ समुदायों की उपेक्षा करने के कारण 2018 का चुनाव हार गई थी।
उधर, बीते दो हफ्तों से महाराष्ट्र सरकार के दो बड़े नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं होने की मीडिया रिपोर्ट्स आ रही हैं। इन रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य की बीजेपी शिवसेना सरकार के दो शीर्ष नेताओं और राज्य के सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के बीच अनबन हो गई है और दोनों नेता एक दूसरे के साथ मंच साझा करते हुए नहीं देखे जा रहे हैं। बताया जा रहा है कुछ मुद्दों को लेकर देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे से नाराज चल रहे हैं इसलिए लगातार दूसरे दिन वह सीएम शिंदे के साथ मंच साझा करने से बचते नजर आ रहे हैं। मुंबई में बुधवार (14 जून) को महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट निगम का 75वां स्थापन दिवस समारोह मनाया जा रहा था। निमंत्रण पत्रिका पर सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम फडणवीस का नाम छापा है लेकिन उनके यहां आने का कोई भी जिक्र नहीं किया गया।
इससे पूर्व 13 जून को शिवसेना ने राज्य के समाचार पत्रों में एक विवादित विज्ञापन छपवाया था जिसमें शिंदे ने लिखा था कि देश के लिए मोदी और महाराष्ट्र के लिए शिंदे। इस विज्ञापन के छपने के बाद से कोल्हापुर में आयोजित एक प्रोग्राम से फडणवीस ने दूरी बनाई थी। उनके दफ्तर से बताया गया कि उनके कान की तकलीफ होने की वजह से वे कोल्हापुर नहीं जा रहे हैं लेकिन दूसरे दिन भी सीएम शिंदे के साथ मंच साझा न करने का क्या मतलब है इसके बारे में वह कोई जानकारी नहीं दे सके। विज्ञापन की एक विवादित बात और सामने आई है जिसमें शिंदे को राज्य में फडणवीस से ज्यादा पॉपुलर बताया गया है। विज्ञापन में एक सर्वे छपा है जिसमें राज्य के सीएम एकनाथ शिंदे को सीएम पोस्ट के लिए 26.1 फीसद लोग पसंद कर रहे है जबकि फड़णवीस को 23.2 फीसद लोग पसंद कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो विवाद की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी पार्टियों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव से पहले एक ओपिनियन पोल कराया गया है जिसमें ये पता लगाया गया है कि महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री की पसंद कौन हैं? इस रेस में महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे सबसे आगे चल रहे हैं जिन्हें ओपिनियन पोल में 26 फीसदी लोगों ने चुना है। मतलब महाराष्ट्र के 26 फीसदी लोग ये मानते हैं कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के अगले सीएम बनें। ओपिनियन पोल के अनुसार, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के वर्तमान सीएम से पिछड़ गए हैं। लेकिन वो एकनाथ शिंदे को कड़ी टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं। देवेंद्र फडणवीस को 23 फीसदी लोग चाहते हैं कि वो महाराष्ट्र के अगले सीएम बनें। फडणवीस लोगों की पसंद में दूसरे नंबर पर हैं जबकि पहले नंबर पर एकनाथ शिंदे हैं। महाराष्ट्र मंे इस दबी बगावत के पीछे यह बड़ी वजह है।